
कर्नाटक में प्रस्तावित सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण, जिसे जाति जनगणना के रूप में जाना जा रहा है, विभिन्न समुदायों और राजनीतिक दलों के बीच विवाद का कारण बन गया है। यह सर्वेक्षण 22 सितंबर से 7 अक्टूबर, 2025 तक निर्धारित है और लगभग ₹420 करोड़ की लागत से आयोजित किया जाएगा
🔍 विवाद के मुख्य बिंदु
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जाति कॉलमों पर आपत्ति: कई कैबिनेट मंत्रियों ने सर्वेक्षण फॉर्म में ‘कुरुबा क्रिश्चियन’, ‘लिंगायत क्रिश्चियन’, ‘वोक्कालिगा क्रिश्चियन’ जैसे उपनामों की उपस्थिति पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह समुदायों के बीच भ्रम उत्पन्न कर सकता है और उन्हें यह समझाने के लिए अधिक समय की आवश्यकता है कि किस कॉलम में क्या भरना है ।
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राज्यपाल को ज्ञापन: भा.ज.पा. नेताओं ने राज्यपाल थावरचंद गहलोत से मुलाकात कर सर्वेक्षण फॉर्म से ‘क्रिश्चियन’ उपनामों को हटाने की मांग की है। उनका कहना है कि जाति व्यवस्था का धर्म परिवर्तन के बाद कोई अस्तित्व नहीं रहता, और इस प्रकार की प्रविष्टियाँ विभाजनकारी हो सकती हैं ।
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मुख्यमंत्री का बयान: मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा है कि ‘ईसाई और मुसलमान भी भारतीय नागरिक हैं’ और सर्वेक्षण का उद्देश्य राज्य के नागरिकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आंकलन करना है। उन्होंने विपक्षी दलों द्वारा इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की आलोचना की है ।
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डीके शिवकुमार की भूमिका: उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा है कि सर्वेक्षण के स्थगन पर निर्णय मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से चर्चा के बाद लिया जाएगा। उन्होंने विपक्षी दलों द्वारा फैलाए जा रहे ‘गलत सूचना’ की आलोचना की है ।
📅 आगामी घटनाएँ
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22 सितंबर से 7 अक्टूबर 2025: सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण का आयोजन
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19 सितंबर 2025: मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय बैठक, जिसमें सर्वेक्षण के भविष्य पर चर्चा की गई
यह विवाद कर्नाटक की राजनीति में महत्वपूर्ण मोड़ ला सकता है, क्योंकि इससे जाति आधारित आरक्षण, सामाजिक न्याय और धार्मिक पहचान से जुड़े मुद्दे फिर से प्रमुखता से उभर सकते हैं।